विटामिन डी हमारी हड्डियों के लिए बहुत जरूरी होता है। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि केवल व्यस्कों को नहीं, बच्चों को भी मजबूत अस्थियों के लिए विटामिन डी की जरूरत होती है। अक्सर लोग बच्चों के विकास में विटामिन डी महत्ता को नजरअंदाज कर देते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि विटामिन डी कमी बच्चे के लिए जानलेवा हो सकती है।
अपने जीवन के पहले वर्ष में बच्चा तेजी से बढ़ता है। इसी दौरान उसकी हड्डियों, रीढ़ की हड्डी और शारीरिक तंत्रों का निर्माण होता है। विटामिन डी की कमी होने से हडिड्यों की कार्यक्षमता और मजबूती पर असर पड़ता है। कुछ मामलों में यह समस्या रिकेट्स का रूप भी ले लेती है। इसमें मांसपेशियों में ऐंठन, स्कोलियोसिस और पैरों का आकार धनुष जैसा हो सकता है।
रिकेट्स बच्चों में होने वाला हड्डियों का विकार होता है। इसमें हड्डियां नाजुक हो जाती हैं। इससे उनमें विकृति आ जाती है और फैक्चर का खतरा बढ़ जाता है। इसके साथ ही आहार में पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम न लेना भी इसका एक कारण हो सकता है। इसके साथ ही नियमित उल्टी और डायरिया को भी रिकेट्स के लिए उत्तरदायी माना जा सकता है। इसके साथ ही बचपन में किडनी और लिवर की समस्यायें भी इसका कारण हो सकती हैं।
विटामिन-डी क्या है
विटामिन डी शरीर में पाया जाने वाला तत्व है। यह शरीर में पाये जाने वाले सेवन हाइड्रक्सी कोलेस्ट्रॉल और अल्ट्रावायलेट किरणों की मदद से बनता है। इसके साथ ही शरीर में रसायन कोलिकल कैसिरॉल पाया जाता है जो खाने के साथ मिलकर विटामिन-डी बनाता है। शरीर में विटामिन-डी का मुख्य काम कैल्शियम बनाना है। यह आंतों से कैल्शियम को अवशोषित कर हड्डियों में पहुंचाता है। साथ ही, हड्डियों में संचित करने में भी मदद करता है। इसकी कमी से मांसपेशियों में भी दर्द होने लगता है।
बच्चों के लिए जरूरी है विटामिन डी
बच्चों के शरीर के लिए जरूरी विटामिन में से एक है विटामिन डी। कुछ लोग इस ‘वंडर विटामिन’ भी कहते हैं। विटामिन डी बच्चों के स्वास्थ्य और उनके विकास के लिए जरूरी है। जानें क्यों जरूरी है विटामिन डी-
- बच्चों के मजबूत दांत और हड्डियों के लिए रक्त में कैल्शियम और पौटेशियम की जरूरत होती है।
- शरीर में मिनरल के संतुलन और ब्लड क्लॉटिंग को रोकने के लिए जरूरी है।
- हृदय व नर्व सिस्टम को ठीक रखने में
- शरीर में इंसुलिन के स्तर को बनाने के लिए
विटामिन डी के स्रोत
आहार
जब बच्चा सॉलिड खाद्य पदार्थों का सेवन करने लग जाता है, तब भी उसके आहार में वसायुक्त मछली शामिल नहीं होती। हालांकि यह विटामिन का उच्च स्रोत मानी जाती है। नवजात के आहार में कम मात्रा में डेयरी उत्पाद और अंडा का पीला हिस्सा देना चाहिए, जिसमें पर्याप्त मात्रा में विटामिन डी होता है।
सूरज की रोशनी
शरीर में विटामिन डी का निर्माण तब शुरू होता है, जब वह अल्ट्रावॉयलेट किरणों के संपर्क में आता है। कड़ी धूप में बिना सनस्क्रीन लगाये सूरज की रोशनी में जाने से ही शरीर को विटामिन डी मिलता है। छह महीने से ऊपर की आयु के बच्चों को थोड़ी देर के लिए सूरज की रोशनी में ले जाया जा सकता है। लेकिन, केवल यही तरीका बच्चों को पर्याप्त मात्रा में विटामिन डी नहीं देता ।
एक वर्ष की आयु के बाद न दें सप्लीमेंट
एक वर्ष की आयु के बाद अधिकतर बच्चे अधिक मात्रा में सॉलिड पदार्थों का सेवन करने लग जाते हैं। यानी वे अन्य स्रोतों से विटामिन हासिल करने लग सकता है। लेकिन कहीं आपका बच्चा किसी वजह से सॉलिड नहीं ले पाता है अथवा वह किसी चिकित्सीय समस्या से परेशान है, जिसके कारण उसे जरूरत के मुताबिक विटामिन नहीं मिल पा रहे हैं, तो बेहतर है कि आप डॉक्टर से सलाह लें और उसके हिसाब से अपने बच्चे की खुराक तय करें।
बचाव
- बच्चों को पौष्टिक खाना खिलाएं।
- शरीर में कैल्शियम की मात्रा संतुलित रखें।
- बच्चे को थोड़ा समय धूप में रखें।
- स्तनपान कराएं।
विटामिन-डी टेस्ट
यह टेस्ट मुख्यतः 25 हाइड्रॉक्सी विटामिन-डी के रूप में किया जाता है, जो कि विटामिन-डी मापने का सबसे अच्छा तरीका माना जाता है।इसके लिए रक्त का नमूना नस से लिया जाता है और एलिसा या कैलिल्टूमिसेंसनस तकनीक से टेस्ट लगाया जाता है। विटामिन-डी अन्य विटामिनों से भिन्न है। यह हार्मोन सूर्य की किरणों के प्रभाव से त्वचा द्वारा उत्पादित होता है। विटामिन-डी के उत्पादन के लिए गोरी त्वचा को 20 मिनट धूप की जरूरत होती है और गहरे रंग की त्वचा के लिए इससे कुछ अधिक समय की जरूरत होती है।
अगर बच्चों को विटामिन डी की सही मात्रा ना दी जाए तो उनके शारीरिक विकास में कई बाधाएं आ सकती हैं। इसलिए अपने नन्हें की जरूरतों को समझें और उसे स्वस्थ बनाए।
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