- दुनिया भर में 15 फीसदी दंपतियों को आती है संतानोत्पत्ति में परेशानी।
- आईवीएफ से हजारों घरों में किलकारी गूंज उठी है।
- आईवीएफ की सफलता की दर होती है काफी अधिक।
- उर्वरण विधि पूरी होने के बाद तैयार भ्रूण को इनक्युबेटर में रखा जाता है।
दुनियाभर में 15 प्रतिशत से अधिक दम्पतियों को गर्भधारण में अड़चनें आती हैं। गर्भधारण करने में अड़चनें आने से दंपती को तकलीफ होना स्वाभाविक है। प्रजनन क्षमता को लेकर लोगों में आधी-अधूरी जानकारियां और कई गलतफहमियां व्याप्त हैं। इन्हें देखकर कई बार हैरानी भी होती है। बांझपन के उपचार में शुक्राणु की मदद से बीज को फलित कर उसे गर्भाशय में रखा जाता है, जिससे एक स्वस्थ बच्चा जन्म ले। हालांकि इस बात को ध्यान रखना भी जरूरी है कि गर्भावस्था को प्रभावित करने वाले कई कारण होते हैं।
किसे होती है समस्या
बांझपन के कई कारण हो सकते हैं। 40 फीसदी मामलों में पुरुषों में समस्या होती है और इतने ही मामलों में महिलायें किसी समस्या से ग्रस्त हो सकती हैं। वहीं दस फीसदी मामलों में महिला और पुरुष दोनों में समस्या हो सकती है। और बाकी 10 प्रतिशत जोड़ों मे बांझपन की कोई विशेष वजह दिखाई नहीं देती। हर दम्पती की अपनी विशेषताएं, गुण होते हैं, जिनके आधार पर यह प्रक्रिया तय होती है। पुरुषों में पाया जाने वाला बांझपन, एंड्रोमेट्रियोसिस, पेल्विक इंफ्लेमेट्री डिसीज, पीसीओएस औऱ अंडसशय में बीज तैयार करने की क्षमता कम होना ये कुछ सामान्य लक्षण हैं, जिनकी वजह से आईवीएफ तकनीक का उपयोग किया जाता है।कैसे करें उपचार
इस समस्या को कई तरीकों से ठीक किया जा सकता है। जैसे कुछ महीनों तक रुककर परिस्थितीयों के सुधरने की प्रतिक्षा करें या फिर आधुनिक तकनीक से इलाज कराएं। सच तो यह है कि गर्भधारणा की इस प्रक्रिया में कई चरण होते हैं, जैसे हार्मोनल ऐसेज, एंड़ोस्कोपी, फॉलिक्युलर मॉनिटरींग, ओवरियन स्टिम्युलेशन और आईयुआई इत्यादि।हर पांचवें मरीज को पड़ती है जरूरत
प्रोफर्ट आईवीएफ फर्टिलिटी सेंटर के प्रोग्रैम डिरेक्टर डॉ.जयदीप टांक ने कहा, बांझपन की समस्या पर इलाज करानेवाले रोगियों में से लगभग हर पांचवे व्यक्ति को आईवीएफ तकनीक की मदद लेने की जरूरत पडती है। बाकी लोगों में से ज्यादातर लोगों पर बुनियादी तरीकों से किए गए इलाज सफल होते हैं। जो दम्पती आखिर आईवीएफ का सहारा लेते हैं उन पर किए जानेवाले उपचारों में भी कई प्रकार की विभिन्नता होती है।कैसा होता है आईवीएफ
आईवीएफ तकनीक के शुरुआती स्तर पर रोगी को गोनैडोट्रोफिंस के इंजेक्शंस (प्रजननक्षम हार्मोन्स) 10 से 15 दिनों तक (ओवरियन स्टिम्युलेशन) दिए जाते हैं। इसके बाद जनरल ऐनेस्थेशिया देकर उसाईट पिकअप नामक एक प्रक्रिया की जाती है, जिसमें अंड़ाणु को पुनःप्राप्त करने के लिए अल्ट्रासाउंड मशीन का उपयोग किया जाता है। इनक्युबेटर में बीज को सुरक्षित तरीके से स्थापित करने के बाद शुक्राणु और बीज को एक साथ लाने के लिए योग्य विधि निश्चित की जाती है। यह प्रक्रिया आईवीएफ तकनीक से हो सकती है, जिसमें हर बीज के लिए एक लाख शुक्राणु रखे जाते हैं, या फिर इंट्रा सायटोप्लास्मिक स्पर्म इंजेक्शन (आईसीएसआई) इस तरीके में हर बीज के साथ एक शुक्राणु को स्वतंत्र रूप से इंजेक्ट किया जाता है। एक बार यह उर्वरण विधि पूरी होने के बाद जो भ्रूण तैयार होते हैं, उन्हें अलग अलग समय के लिए इनक्युबेटर में रखा जाता है। इस समय के पूरे होने पर सबसे अच्छे गर्भ को चुनकर उसे गर्भाशय में पुनः स्थापित किया जाता है। इस प्रक्रिया को एम्ब्र्यो ट्रांस्फर कहते हैं।सफलता-असफलता की दरइस तरह से गर्भ को गर्भाशय में पुनः स्थापित करने के बाद गर्भाशय की अंदरूनी परत और गर्भ इन दोनों के पारस्परिक प्रभाव पर इस तकनीक की सफलता निश्चित होती है। अगर इन दोनों का संबंध अच्छा रहा तो गर्भधारणा की प्रक्रिया सफल होती है औऱ ऐसा ना होने पर गर्भ सूख जाता है औऱ गर्भधारण नहीं हो पाता है।सरोगेस
जिन दम्पतियों को शुक्राणु या बीज या फिर पिण्ड गर्भ के दान कि ज़रूरत पड़ती है, उनमें जननाणुओं का उपयोग कराने कि जो व्यक्तिगत क्षमता होती है उसके अनुसार उनकी मदद कर सकते हैं। सरोगसी (एक दम्पति के लिए किसी अन्य महिला के गर्भाशय में भ्रुण स्थापित करना) के बारे में अब तक बहुत चर्चा की जा चुकी है, लेकिन फिर भी इस तकनीक को अब भी एक आखिरी विकल्प कि तरह देखा जाता है। विशेष रूप से जिन महिलाओं के गर्भाशय का कार्य ठीक तरह से नहीं होता है, या फिर जिनके पास गर्भाशय ही नहीं होता है उनके लिए ही इस विकल्प पर विचार किया जाता है। अधिक जानकारी के लिए मदरहुड चैतन्य हॉस्पिटल आइए।
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