“हेलिकॉप्टर पैरेंट“ जी हाँ , ये टर्म हम उन पेरेंट्स के लिए उपयोग में लाते है जो अपने बच्चो की एक्टिविटीज में, उनकी लाइफ में बहुत ज्यादा दखल रखते है और उन्हें बहुत ज्यादा प्रोटेक्ट करते है। जिस तरह हेलिकॉप्टर किसी एक जगह के ठीक ऊपर रहकर वहाँ से उस जगह की हर एक एक्टिविटी को देख सकता है, उसे कण्ट्रोल कर सकता है और समय आने पर तुरंत मदद के लिए सामने आ सकता है, उसी तरह हेलिकॉप्टर पेरेंट्स भी अपने बच्चे हर एक एक्टिविटी पर बहुत ज्यादा ध्यान देते है, उन्हें कब क्या करना है और कब नहीं इसे वो खुद निर्धारित करते है, अपने बच्चे की लाइफ में वो कोई प्रॉब्लम आने नहीं देते या कोई प्रॉब्लम आ भी जाती है तो वो तुरंत बच्चे की मदद के लिए आ जाते है।
जैसे:
* बहुत से पेरेंट्स अपने 7-8 साल के बच्चे को भी ये सोचकर अपने हाथ से खाना खिलाते है। कि पता नहीं खुद से खायेगा तो ठीक से खायेगा या नहीं और भूखा रह जायेगा।
* अपने बच्चो को बाहर खेलने नहीं जाने देते क्योकि उसे चोट लग सकती है या वो दुसरे बच्चो से डील नहीं कर पायेगा।
* खुद बच्चे के साथ पार्क में जाते है और दूसरे बच्चो से एडजस्टमेंट करवाकर खुद का बच्चा जैसा चाहता है वैसा करवा लेते है।
* किसी से झगडा होने पर या उसकी बात ना मानने पर बच्चा रोते हुए घर आ जाता है और बच्चे की बजाय पेरेंट्स जाकर दूसरे बच्चो से डील करते है।
* होमवर्क या प्रोजेक्ट में कोई परेशानी आने पर पेरेंट्स खुद ही बच्चे का होमवर्क या प्रोजेक्ट कर देते है क्यों कि अगर काम पूरा नहीं हुआ तो टीचर उसे डाटेंगी या उसे मार्क्स अच्छे नहीं मिलेंगे।
इस तरह से बच्चे के लिए सोचने, समझने, निर्णय लेने, किसी परेशानी का हल ढूंढने जैसे सारे काम पेरेंट्स खुद कर रहे है उस परिस्थिति में भी जबकि बच्चा खुद से उन कामों को करने में सक्षम है। इसके पीछे पैरेंट का सिर्फ ये उद्देश्य होता है कि उनके बच्चे एक आरामदायक जिन्दगी जीए, उन्हें किसी चीज़ से कोई तकलीफ ना हो, उनकी जिन्दगी में ऐसी कोई परेशानी न हो जिससे वो चिंता, दुःख या तनाव महसूस करे। पर शायद हम ये भूल जाते है कि हमारी जिन्दगी में जो उतार–चढाव आते है, जो कठिनाइयाँ आती है उनसे हम सामाजिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से तैयार और मजबूत होते है। अगर हम अपने बच्चो की जिन्दगी में से कठिनाइयों को ही हटा देंगे या उन्हें इसका सामना करना नहीं सिखायेंगे तो वो एक कमजोर वयस्क के रूप में बड़े होंगे जो अपनी जिन्दगी में आने वाली हर छोटी बड़ी समस्या को देखकर घबरा जाते है क्योकि उन्हें समस्या को सामान्य रूप से देखना और उसके समाधान के लिए कोशिश करना सिखाया ही नहीं गया। ना ही किसी समस्या समाधान के लिए जो भावनात्मक और मानसिक कौशल चाहिए उन्हे विकसित करने का मौका मिला। अभी तक पेरेंट्स उनकी हर समस्या का समाधान कर रहे थे तो अब भी वो ये चाहते है कि पेरेंट्स या पेरेंट्स की अनुपस्थिति मे कोई दूसरा आये और उनकी समस्या का समाधान करे। इस तरह उनकी जिन्दगी में से परेशानियों और कठिनाइयों को कम करने की बजाय हम और ज्यादा परेशानियाँ बढ़ा रहे है।
अपने बच्चो की एक्टिविटीज में इंटरेस्ट लेना, उनको गाइड करना, उनकी हेल्प करना ये एक अच्छी पेरेंटिंग में आता है पर सिर्फ तब तक जब तक कि आप उसे उसे कठिनाइयों का सामना करने का मौका और उससे कुछ नया ‘सीखने‘ के लिए मदद और प्रोत्साहन दे रहे न की तब जब की आप उसकी सोचने और निर्णय लेने की शक्ति को ही ख़तम कर दे।
हम में से बहुत से पेरेंट्स को ये पता ही नहीं चल पाता कि कब हम एक ‘अच्छी पेरेंटिंग’ से ‘हेलिकॉप्टर पेरेंटिंग‘ में आ गए है। इसके लिए
1. अपनी रोजाना की एक्टिविटी पर एक नज़र डाले और देखे कि कौन से ऐसे काम है जो आपका बच्चा खुद कर सकता है पर वो काम आप कर रहे है अगर बच्चा उस उम्र में है जब वो किसी काम को कर सकता है तो उसे वो काम करने दे।
2. अपनी प्रॉब्लम से बच्चे को खुद डील करने दे. उसे कहे की अपनी प्रॉब्लम को वो पूरी तरह बताये, ये अंतर सोचे कि कब प्रॉब्लम है और कब नहीं और अलग–अलग ४ तरीके सोचे जिनसे वो अपनी प्रॉब्लम सॉल्व कर पायेगा। उसे खुद निर्णय लेकर खुद ही समाधान करने दे। आप उसके निर्णय और समाधान के तरीको पर निगरानी रख सकते है और उसे सही–गलत बता सकते है पर उसे खुद से समाधान करने दे।
3. बच्चा जब अपनी पढाई, दोस्तों के व्यवहार या और दूसरी कठिनाइयों का खुद से समाधान करता है तो उसका आत्मविश्वास बढ़ता है, उसमे दुसरो से बात करने, तर्क करने, एडजस्ट करने, किसी भी प्रॉब्लम के लिए एक तरीके की बजाय अलग–अलग तरीके खोजने जैसे कई स्किल्स विकसित हो जाते है जिससे वो एक ‘समर्थ‘ व्यक्ति के रूप में बड़ा होता है।
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